2.1 संगठन का विवरण
एशिया और प्रशांत के लिए आर्थिक और सामाजिक आयोग (ईएससीएपी) द्वारा दिव्यांग व्यक्तियों के एशियाई और प्रशांत दशक 1993-2002 को शुरू करने के लिए बैठक दिसम्बर, 1992 में बीजिंग में बुलाई गई थी, जिसने एशियाई और प्रशांत क्षेत्र में दिव्यांग व्यक्तियों की पूर्ण भागीदारी और समानता पर उद्घोषणा को अपनाया था। भारत उक्त उद्घोषणा का एक हस्ताक्षरकर्ता है। इसलिए, उद्घोषणा को लागू करने के लिए, भारत सरकार ने दिव्यांग व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 (इसमें इसके बाद दिव्यांग व्यक्ति अधिनियम के रूप में संदर्भित) अधिनियमित किया, जो 7 फरवरी 1996 से प्रभावी हुआ, जो दिव्यांगजन के अधिकार (आरपीडब्ल्यूडी) अधिनियम, 2016 द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है।
आरपीडब्ल्यूडी अधिनियम में यह प्रावधान किया गया है कि एक मुख्य आयुक्त-दिव्यांगजन होगा और प्रत्येक राज्य में एक आयुक्त- दिव्यांगजन होगा। तदनुसार, भारत सरकार द्वारा कार्यालय, मुख्य आयुक्त-दिव्यांगजन स्थापित किया गया था, जिसने अक्टूबर, 1998 से कार्य करना शुरू किया। कार्यालय, मुख्य आयुक्त दिव्यांगजन, 5वाँ तल, एन.आई.एस.डी. भवन, जी-2, सेक्टर-10, द्वारका, नई दिल्ली-110075 में स्थित है।
कार्यालय, मुख्य आयुक्त-दिव्यांगजन का संगठन पदानुक्रम निम्नानुसार है:
मुख्य आयुक्त
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1
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आयुक्त
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2
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उप मुख्य आयुक्त
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2
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डेस्क अधिकारी
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2
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निजी सचिव
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1
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लेखाकार
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1
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निजी सहायक
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6
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अनुसंधान सहायक
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1
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अवर श्रेणी लिपिक
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4
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चालक
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1
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चपरासी
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2
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सफाई कर्मचारी
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1
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2.2 मुख्य आयुक्त - दिव्यांगजन की शक्तियाँ:
पीडब्ल्यूडी अधिनियम की धारा 77 के अनुसार मुख्य आयुक्त के पास इस अधिनियम के अधीन अपने कार्यों का निर्वहन करने के प्रयोजन के लिए वही शक्तियाँ हैं, जो निम्नलिखित मामलों के सम्बन्ध में किसी वाद का विचारण करते समय सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अधीन सिविल न्यायालय में निहित हैं, अर्थात :-
(क) साक्षियों को समन करना और उन्हें हाजिर कराना;
(ख) किन्हीं दस्तावेजों को प्रकटीकरण और पेश किए जाने की अपेक्षा करना;
(ग) किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रतियाँ की माँग करना;
(घ) शपथ-पत्रों पर साक्ष्य ग्रहण करना; और
(ड) साक्षियों या दस्तावेजों के परीक्षण के लिए अधिकार-पत्र जारी करना।
मुख्य आयुक्त-दिव्यांगजन के समक्ष प्रत्येक कार्यवाही भारतीय दंड संहिता की धारा 193 और 228 के अर्थों में न्यायिक कार्यवाही होगी तथा मुख्य आयुक्त को दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 195 और अध्याय 26 के प्रयोजनों के लिए सिविल न्यायालय समझा जाएगा।
विभाग के प्रमुख होने के नाते, सभी प्रशासनिक और वित्तीय शक्तियाँ मुख्य आयुक्त-दिव्यांगजन या उनकी अनुपस्थिति में, सरकार द्वारा विधिवत अधिकृत आयुक्त / उप मुख्य आयुक्त में निहित हैं।
मुख्य आयुक्त को आयुक्त और उप-मुख्य आयुक्त, डेस्क अधिकारी और अन्य स्टाफ सदस्यों द्वारा उनके कर्तव्यों के निर्वाह के लिए सहायता प्रदान की जाती है।
2.3 मुख्य आयुक्त-दिव्यांगजन के कार्य
आरपीडब्ल्यूडी अधिनियम, 2016 की धारा 75 में किए गए निर्धारण के अनुसार मुख्य आयुक्त के कार्य निम्न प्रकार हैं:-
(क) स्वप्रेरणा से या अन्यथा किसी विधि के उपबंध या नीति, कार्यक्रम और प्रक्रियाओं की पहचान करेगा, जो इस अधिनियम से असंगत हैं और आवश्यक सुधार के उपायों की सिफारिश करेगा;
(ख) स्वप्रेरणा से या अन्यथा दिव्यांगजनों को अधिकारों से वंचित करने और उन विषयों के सम्बन्ध में उन्हें उपलब्ध सुरक्षा उपायों की जांच करेगा, जिनके लिए केन्द्र सरकार समुचित सरकार है और सुधारक कार्रवाई के लिए समुचित प्राधिकारियों के पास मामले को उठायेगा।
(ग) इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन या उस समय लागू किसी अन्य कानून द्वारा दिव्यांगजन के अधिकारों के सरंक्षण के लिए उपलब्ध सुरक्षा उपायों की समीक्षा करेगा और उनके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए उपायों की सिफारिश करेगा;
(घ) उन कारकों की समीक्षा करेगा, जो दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों का उपयोग करने में बाधा उत्पन्न करते हैं तथा समुचित सुधार के उपायों की सिफारिश करेगा;
(ड) दिव्यांगजन के अधिकारों पर सन्धियों और अन्य अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों का अध्ययन करेगा और उनके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए सिफारिशें करेगा;
(च) दिव्यांगजन के अधिकारों के क्षेत्र में अनुसंधान करेगा और उनका संवर्धन करेगा;
(छ) दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों और उनके संरक्षण के लिए उपलब्ध सुरक्षा उपायों पर जागरूकता का संवर्धन करेगा;
(ज) दिव्यांगजन के लिए आशयित इस अधिनियम के उपबंधों, स्कीमों और कार्यक्रमों के कार्यान्वयनों की निगरानी करेगा;
(झ) दिव्यांगजन के फायदे के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा संवितरित निधियों के उपयोजन की निगरानी करेगा; और
(त्र) ऐसे अन्य कार्यों को करेगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा सौंपे जाएँ।
2.4 मिशन / विजन वक्तव्य
विजन
एक ऐसा भारत, जो अपने दिव्यांग नागरिकों को उतना ही महत्व देता है जितना कि गैर-दिव्यांग नागरिकों को।
मिशन
- दिव्यांग नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना
- दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों का सृजन करना ताकि वे समानता और सम्मान का जीवन जी सकें।
- दिव्यांग व्यक्तियों के लिए एक समावेशी, बाधा मुक्त और अधिकार-आधारित सोसायटी को बढ़ावा देना।
2.5 सेवा वितरण की निगरानी के लिए उपलब्ध तंत्र और लोक शिकायत के निवारण के लिए प्रक्रिया
आरपीडब्ल्यूडी अधिनियम के कार्यान्वयन की स्थिति की निगरानी और समीक्षा के लिए, राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों के आयुक्त-दिव्यांगजन से रिपोर्ट माँगी जाती है। इसके अलावा, इस उद्देश्य के लिए सीसीपीडी के कार्यालय द्वारा राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों के आयुक्त-दिव्यांगजन की एक वार्षिक बैठक आयोजित की जाती है।
मुख्य आयुक्त-दिव्यांगजन कार्यालय समावेशी शिक्षा, दिव्यांग व्यक्तियों के लिए रोजगार के अवसर, बाधा मुक्त वातावरण आदि जैसे प्रमुख फोकस क्षेत्रों के बारे में जागरूकता पैदा करने और बढ़ावा देने के लिए कार्यशालाओं का आयोजन भी करता है। वर्ष 2005-06 में, पूरे देश में "एक्सेस ऑडिटर्स के रिसोर्स पूल" के निर्माण के लिए प्रशिक्षण कार्यशालाएँ भी आयोजित की गई। सार्वजनिक स्थानों या सार्वजनिक उपयोगिता भवनों में बाधा मुक्त निर्मित वातावरण बनाने के लिए सम्बन्धित संगठनों द्वारा प्रशिक्षित एक्सेस ऑडिटर्स की सेवाओं का उपयोग किया जाएगा।
सीसीपीडी का कार्यालय, स्वयं संज्ञान लेकर या किसी पीड़ित व्यक्ति के आवेदन पर सम्बन्धित संगठनों के साथ अधिनियम, नियम, विधि, सरकारी संगठनों द्वारा जारी निर्देशों, आदि के गैर-कार्यान्वयन से सम्बन्धित मामले को उठाता है।
मुख्य आयुक्त-दिव्यांगजन के समक्ष शिकायत प्रस्तुत करने की प्रक्रिया आरपीडब्ल्यूडी नियम, 2017 के नियम 38 में निर्धारित की गई है जो इस प्रकार है -
(1) पीड़ित व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से या अपने प्रतिनिधि द्वारा मुख्य आयुक्त या आयुक्त को निम्नलिखित विवरण के साथ शिकायत प्रस्तुत कर सकता है या मुख्य आयुक्त या आयुक्त को संबोधित पंजीकृत डाक या ईमेल द्वारा भेज सकता है, अर्थात्: -
(क) पीड़ित व्यक्ति का नाम, विवरण और पता;
(ख) प्रतिपक्ष या पार्टियों का नाम, विवरण और पता, जैसा भी मामला हो, जहाँ तक उनका पता लगाया जा सकता है;
(ग) शिकायत से सम्बन्धित तथ्य और यह कब और कहाँ उत्पन्न हुए;
(घ) शिकायत में शामिल आरोपों के समर्थन में दस्तावेज; तथा
(ड) वह राहत जो पीड़ित व्यक्ति चाहता है।
(2) मुख्य आयुक्त या आयुक्त शिकायत प्राप्त होने पर, शिकायत की एक प्रति शिकायत में उल्लिखित प्रतिपक्ष या पार्टियों को भेजेगा और उन्हें तीस दिनों की अवधि के भीतर या मुख्य आयुक्त या आयुक्त द्वारा स्वीकृत 15 दिनों की विस्तारित अवधि के भीतर मामले पर अपने विचार प्रस्तुत करने का निर्देश देगा।
(3) सुनवाई की तारीख या किसी अन्य तारीख को, जिसके लिए सुनवाई स्थगित की गई हो, पार्टियाँ या उनके प्रतिनिधि मुख्य आयुक्त या आयुक्त के समक्ष उपस्थित होंगे।
(4) जहाँ पीड़ित व्यक्ति या उसका प्रतिनिधि उक्त तारीखों को मुख्य आयुक्त या आयुक्त के समक्ष उपस्थित होने में विफल रहता है, मुख्य आयुक्त या आयुक्त या तो चूक पर शिकायत को खारिज कर सकते हैं या योग्यता के आधार पर निर्णय ले सकते हैं।
(5) जहाँ प्रतिपक्ष या उसका प्रतिनिधि सुनवाई की तारीख को उपस्थित होने में विफल रहता है, मुख्य आयुक्त या आयुक्त अधिनियम की धारा 77 के तहत प्रतिपक्ष को बुलाने या प्रतिपक्ष की उपस्थिति को प्रवर्तित करने के लिए ऐसी आवश्यक कार्रवाई कर सकते हैं जो वह उचित समझें।
(6) मुख्य आयुक्त या आयुक्त, यदि आवश्यक हो, शिकायत का एकपक्षीय निपटारा कर सकते हैं।
(7) मुख्य आयुक्त या आयुक्त ऐसी शर्तों पर जो वह ठीक समझे और कार्यवाही के किसी भी स्तर पर शिकायत की सुनवाई स्थगित कर सकते हैं।
(8) मुख्य आयुक्त या आयुक्त, जहाँ तक सम्भव हो, प्रतिपक्ष को नोटिस प्राप्त होने की तारीख से तीन महीने की अवधि के भीतर शिकायत पर निर्णय करेंगे।
उपरोक्त प्रक्रिया के अनुसार डाक, फैक्स या ई-मेल द्वारा प्राप्त शिकायतों को मुख्य आयुक्त / आयुक्त / उप मुख्य आयुक्त के पास भेजा जाता है।
कारण बताओ नोटिस काफी विस्तृत होते हैं, जिनमें अधिनियम, नियमों, विनियमों आदि की धारा के प्रासंगिक प्रावधान के उल्लंघन और प्रतिवादी द्वारा की जाने वाली सम्भावित उपचारात्मक कार्रवाई की ओर इशारा किया जाता है। यदि सुधारात्मक कार्रवाई की जाती है, तो मामले का उसी स्तर पर निपटारा कर दिया जाता है और उचित आदेश पारित किया जाता है। अन्य मामलों में, विरोधी पक्षों के जवाब प्राप्त होने पर, शिकायतकर्ता को पुनरुत्तर प्रस्तुत करने का अवसर दिया जाता है। इसके बाद समन जारी कर पक्षों को व्यक्तिगत सुनवाई दी जाती है।
पक्षों को सुनने के बाद, अन्तरिम आदेश / सलाह वाली कार्यवाही का रिकॉर्ड मौके पर तैयार किया जाता है और पार्टियों को सौंप दिया जाता है।
मुख्य आयुक्त का कार्यालय भी प्रतिष्ठानों द्वारा जारी विज्ञापनों के आधार पर बड़ी संख्या में मामलों का स्वतः संज्ञान लेता है। इनमें से अधिकांश मामले नियुक्तियों में रिक्तियों के आरक्षण और सरकारी या सरकारी सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों द्वारा संचालित विभिन्न पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए सीटों के आरक्षण से सम्बन्धित होते हैं।
बड़ी संख्या में दिव्यांग लोगों या उनके प्रतिनिधियों को भी बिना किसी लिखित शिकायत या पूर्व-सूचना के व्यक्तिगत सुनवाई दी जाती है। अक्सर, शिकायतकर्ताओं को अभ्यावेदन / शिकायतें तैयार करने में अधिकारियों और स्टाफ सदस्यों द्वारा सहायता प्रदान की जाती है और उन्हें परामर्श भी दिया जाता है।